श्री १०८ निर्वेग सागरजी महाराज
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मुनि श्री जी

पूर्व का नाम: बा. ब्र. दिलीप कुमार जी जैन
जन्म: १o दिसंबर १९७३ गुरूवार पौषशुक्ल ११ वि. स. २०३०
जन्म स्थान: छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश
माताजी का नाम: श्रीमती कमला बाईजी जैन
पिताजी का नाम: स्वर्गीय श्री वंशीलालजी जैन
भाई बहन जन्म के क्रम से): 1. श्रीमती सुनीता 2. श्रीमती अनीता 3. श्रीमती विनीता 4. श्रीमती बबीता 5. श्री दीपक  6. आपका क्रम 7. बा.      ब्र.स्वेता दीदी ( वर्तमान आ. श्री संतुष्ट मति माता जी )
लौकिक शिक्षा: बी.एससी (प्रथम वर्ष)
ब्रह्मचर्य व्रत: १ जुलाई १९९२ को आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज से सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर, जिला दमोह, मध्य प्रदेश
क्षुल्लक दीक्षा: ७ अक्टूबर १९९५ को सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर, जिला दमोह, मध्य प्रदेश
ऐलक दीक्षा:   २१ अगस्त १९९६ को अतिशयक्षेत्र महुआजी, जिला सूरत, गुजरात
मुनि दीक्षा: १६ अक्टूबर १९९६ को मध्य प्रदेश के देवास जिले के सिद्धक्षेत्र नेमावर
मुनि श्री १०८ निर्वेग सागरजी

मुनि श्री के बारे में

अपराजेय साधक संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री १०८ निर्वेग सागरजी महाराज, आचार्य श्री के खजाने का एक नायाब अनमोल हीरा हैं। इस हीरे की चमक से एक तरफ सम्पूर्ण जिनागम प्रकाशित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर जन समुदाय के जीवन में ज्ञान, ध्यान का प्रकाश फैल रहा है। उनका गहन-गम्भीर ज्ञान, निर्दोष-निस्पृह चर्या और सहज-सरल वृत्ति सहज ही सभी को अपनी ओर खींच लेते हैं। धर्म और दर्शन जैसे गूढ़ विषयों की सरल और सरस प्रस्तुति उनका अनुपम वैशिष्टय है। मुनिश्री की वाणी में ओज, लालित्य और सहज आकर्षण है। वे अपनी बात को बड़ी सहजता और सरलता से श्रोताओं के हृदय में उतार देने में सिद्धहस्त हैं, यही कारण है कि उनके प्रवचनों में हजारों-हजार श्रोताओं के मध्य भी सूचीपात नीरवता रहती है।

जिस प्रकार सागर अपने अन्दर अनेक रत्नों को समाये रहता है, उसी तरह मुनि श्री १०८ निर्वेग सागरजी महाराज, अपने दादा गुरु और गुरु महाराज दोनों के रत्न रूपी अनेक गुणों को अपने में समाए हुए हैं। दादा गुरु आचार्य प्रवर ज्ञानसागर जी महाराज के पद चिन्हों पर चलते हुए संस्कृत का अद्भुत, सूक्ष्म, गहन ज्ञान व लेखन और गुरु महाराज आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पद चिन्हों पर चलते हुए उन्हीं की तरह का चुम्बकीय व्यक्तित्व, सरलता, समता, शांति मूर्ति और दोनों की तरह बहुभाषाविद, दार्शनिक कवि, कुशल काव्य शिल्पी, श्रेष्ठ चर्या पालक, कठोर साधक, चिन्तक, लेखक और जैन आगम के अनेक विषयों के आप ज्ञाता हैं।

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दीक्षा के पश्चात उनका नाम मुनि श्री १०८ निर्वेग सागरजी महाराज रखा गया। मुनि श्री बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए नगरों में पाठशाला खोलने पर जोर देते हैं, जिससे बच्चे संस्कारी बनें। मुनि श्री जी की गृहस्थ जीवन की बहन आर्यिका श्री 105 संतुष्टमति माताजी हैं, जो आपके ही गुरु द्वारा दीक्षित हैं।

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