अपराजेय साधक संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री १०८ निर्वेग सागरजी महाराज, आचार्य श्री के खजाने का एक नायाब अनमोल हीरा हैं। इस हीरे की चमक से एक तरफ सम्पूर्ण जिनागम प्रकाशित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर जन समुदाय के जीवन में ज्ञान, ध्यान का प्रकाश फैल रहा है। उनका गहन-गम्भीर ज्ञान, निर्दोष-निस्पृह चर्या और सहज-सरल वृत्ति सहज ही सभी को अपनी ओर खींच लेते हैं। धर्म और दर्शन जैसे गूढ़ विषयों की सरल और सरस प्रस्तुति उनका अनुपम वैशिष्टय है। मुनिश्री की वाणी में ओज, लालित्य और सहज आकर्षण है। वे अपनी बात को बड़ी सहजता और सरलता से श्रोताओं के हृदय में उतार देने में सिद्धहस्त हैं, यही कारण है कि उनके प्रवचनों में हजारों-हजार श्रोताओं के मध्य भी सूचीपात नीरवता रहती है।