Awesome Imageआचार्य श्री जी

श्रमण संस्कृति उन्नायक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

वास्तव में ऐसे महापुरुष मानव जाति के प्रकाश पुंज हैं, जो मनुष्‍य को धर्म की प्रेरणा देकर उनके जीवन के अंधेरे को दूर करके उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाने का महान कार्य करते हैं। वास्तव में ये महान् आत्माएँ ही मानवता के जीवन मूल्यों का प्रतीक हैं। मुनि विद्यासागर के बचपन का नाम विद्याधरजी था। उनका जन्म बेलगाँव जिले के गाँव चिक्कोड़ी में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ। माता आर्यिकाश्री समयमतिजी और पिता मुनिश्री मल्लिसागरजी दोनों ही बहुत धार्मिक थे। मुनिश्री ने कक्षा नौवीं तक कन्नड़ी भाषा में शिक्षा ग्रहण की और नौ वर्ष की उम्र में ही उनका मन धर्म की ओर आकर्षित हो गया और उन्होंने उसी समय आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का संकल्प कर लिया। उन दिनों विद्यासागरजी आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज के प्रवचन सुनते रहते थे|

इसी प्रकार धर्म ज्ञान की प्राप्ति करके, धर्म के रास्ते पर अपने चरण बढ़ाते हुए मुनिश्री ने मात्र 22 वर्ष की उम्र में अजमेर (राजस्थान) में 30 जून, 1968 को आचार्यश्री ज्ञानसागरजी महाराज के शिष्यत्व में मुनि दीक्षा ग्रहण की। दिगंबर मुनि संत विद्यासागरजी और भी कई भाषाओं पर अपनी कमांड जमा रखी थी। उन्होंने कन्नड़ भाषा में शिक्षण ग्रहण करने के बाद भी अँग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत, कन्नड़ और बांग्ला भाषाओं का ज्ञान अर्जित करके उन्हीं भाषाओं में लेखन कार्य किया।

वास्तव में ऐसे महापुरुष मानव जाति के प्रकाश पुंज हैं, जो मनुष्‍य को धर्म की प्रेरणा देकर उनके जीवन के अंधेरे को दूर करके उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाने का महान कार्य करते हैं। वास्तव में ये महान् आत्माएँ ही मानवता के जीवन मूल्यों का प्रतीक हैं। मुनि विद्यासागर के बचपन का नाम विद्याधरजी था। उनका जन्म बेलगाँव जिले के गाँव चिक्कोड़ी में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ। माता आर्यिकाश्री समयमतिजी और पिता मुनिश्री मल्लिसागरजी दोनों ही बहुत धार्मिक थे। मुनिश्री ने कक्षा नौवीं तक कन्नड़ी भाषा में शिक्षा ग्रहण की और नौ वर्ष की उम्र में ही उनका मन धर्म की ओर आकर्षित हो गया और उन्होंने उसी समय आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का संकल्प कर लिया। उन दिनों विद्यासागरजी आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज के प्रवचन सुनते रहते थे|

इसी प्रकार धर्म ज्ञान की प्राप्ति करके, धर्म के रास्ते पर अपने चरण बढ़ाते हुए मुनिश्री ने मात्र 22 वर्ष की उम्र में अजमेर (राजस्थान) में 30 जून, 1968 को आचार्यश्री ज्ञानसागरजी महाराज के शिष्यत्व में मुनि दीक्षा ग्रहण की। दिगंबर मुनि संत विद्यासागरजी और भी कई भाषाओं पर अपनी कमांड जमा रखी थी। उन्होंने कन्नड़ भाषा में शिक्षण ग्रहण करने के बाद भी अँग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत, कन्नड़ और बांग्ला भाषाओं का ज्ञान अर्जित करके उन्हीं भाषाओं में लेखन कार्य किया।

आचार्यश्री जी का परिचय

संत कमल के पुष्प के समान लोकजीवनरूपी वारिधि में रहता है, संचरण करता है, डुबकियाँ लगाता है, किंतु डूबता नहीं। यही भारत भूमि के प्रखर तपस्वी, चिंतक, कठोर साधक, लेखक, राष्ट्रसंत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के जीवन का मंत्र घोष है।

पूर्व नाम                  :    श्री विद्याधरजी
पिता श्री                  :    श्री मल्लप्पाजी अष्टगे (मुनिश्री मल्लिसागरजी)
माता श्री                  :    श्रीमती श्रीमंतीजी (आर्यिकाश्री समयमतिजी)
भाई/बहन               :    चार भाई, दो बहन
जन्म स्थान            :    चिक्कोड़ी (ग्राम-सदलगा के पास), बेलगाँव (कर्नाटक)
जन्म तिथि             :    आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) वि.सं. २००३, १०-१०-१९४६, गुरुवार, रात्रि में १२:३० बजे
जन्म नक्षत्र             :    उत्तरा भाद्र
शिक्षा                      :    ९वीं मैट्रिक (कन्नड़ भाषा में)
ब्रह्मचर्य व्रत           :    श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, चूलगिरि (खानियाजी), जयपुर (राजस्थान)
प्रतिमा                    :    सात (आचार्यश्री देशभूषणजी महाराज से)
स्थल                      :    १९६६ में श्रवण बेलगोला, हासन (कर्नाटक)
मुनि दीक्षा स्थल      :    अजमेर (राजस्थान)
मुनि दीक्षा तिथि      :    आषाढ़, शुक्ल पंचमी वि.सं., २०२५, ३०-०६-१९६८, रविवार
आचार्य पद तिथि     :    मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया-वि.सं. २०२९, दिनांक २२-११-१९७२, बुधवार
आचार्य पद स्थल     :    नसीराबाद (राजस्थान) में, आचार्यश्री ज्ञानसागरजी ने अपना आचार्य पद प्रदान किया।
मातृभाषा                :    कन्नड़