दीक्षा के पश्चात उनका नाम मुनि श्री १०८ निर्वेग सागरजी महाराज रखा गया। मुनि श्री बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए नगरों में पाठशाला खोलने पर जोर देते हैं, जिससे बच्चे संस्कारी बनें। मुनि श्री जी की गृहस्थ जीवन की बहन आर्यिका श्री 105 संतुष्टमति माताजी हैं, जो आपके ही गुरु द्वारा दीक्षित हैं।
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