कुंभकर्ण और मेघनाथ की निर्वाण स्थली
विश्वप्रसिद्ध ५२ गज की आदिनाथ भगवान की प्रतिमा

मेघनाथ व कुंभकर्ण की मोक्षस्थली… आदिनाथ भगवान की 84 फुट 52 गज ऊँची एक ही पाषाण में उकेरी उतंग प्रतिमा… मनोरम पहाड़ी… नयनाभिराम प्राकृतिक दृश्य और तलहटी में सुंदर मंदिरों की पंक्ति… यह सुनते ही जो कल्पना मन में उभरती है वह है सिद्ध क्षेत्र बावनगजा जी की।

बड़वानी बडनयर सुचंग दक्षिणदिसि गिरि चूल उतंग।

इंद्रजीत अरू कुंभजुकर्ण ते बंदौ भवसागर तर्ण।।

आचार्य कुन्द-कुन्द के ग्रंथ की यह पंक्तियाँ हमें अहसास कराती है कि यह क्षेत्र 2000 वर्ष प्राचीन है पर इसमें कहीं भी भगवान आदिनाथ की उतंग प्रतिमा का उल्लेख नहीं होने से इसकी प्राचीनता को लेकर कई प्रश्न हैं।

आदिवासियों की मान्यताओं, लोकगीतों व लोककथाओं के अनुसार तो आदिबाबा की यह प्रतिमा रामायणकालीन है लेकिन इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं है। इसलिए यह कहना मुश्किल है कि मूर्ति कब बनाई गई। मूर्ति का सर्वप्रथम बखान 13 वीं-13 वीं शताब्दी के विद्वान यतिमदन कीर्ति ने शासन चतुस्त्रिशिका शीर्षक की लघु कृति में किया गया है। इस तीर्थ को उन्होंने आदिनिषधिका व इसके नगर को वृहत्त्पुर नाम दिया है व मूर्ति को वृहददेव कहा है।

पुरातत्वीय अभिलेख व यहाँ के शिलालेखों की दृष्टि से देखें तो यतिमदनकीर्ति से पूर्ववर्ती शिलालेख भी एक मंदिर के सभामण्डप से प्राप्त हुए हैं। भाद्रपद बदी चौदस, शुक्रवार संवत् 1223 के इन शिलालेखों में रामचंद्र मुनि की प्रशंसा व दक्षिण दिशा के मुनि लोकनंद, देवनंद और उनके शिष्य रामचंद्र की प्रशंसा करते हुए उनके द्वारा मंदिर बनाए जाने का उल्लेख है। संभवतः यह मंदिर चूलगिरि का ही है। चूलगिरि मंदिर में विक्रम संवत् 1131, 1242 की प्रतिमाएँ विराजमान है जो इसकी प्राचीनता का संकेत दे रही हैं। इसलिए ही इस मूर्ति को 13 वीं शताब्दी से पूर्व की मान लिया गया है। इस पुरातात्वीक स्थल के अतीत को जानना एक खोज ही होगी, जो आवश्यक है इसकी प्राचीनता पर उठती अंगुलियों को रोकने के लिए।

जीर्ण-क्षीर्ण अवस्था में मिली इस आदिनाथ की प्रतिमा का कई बार जीर्णोद्धार करवाया गया तब जाकर वह आज इस रूप में मूर्ति को संरक्षित किया जा सकता है। यहाँ विक्रम संवत् 1939 माघ सुदी दशमी, शुक्रवार को 13 मंदिरों के निर्माण के बाद पंचकल्याणक महोत्सव मनाया गया था। इसके 57 साल बाद फतेहचंद मूलचंद कुशलाह ने आदिनाथ भगवान की मूर्ति का जीर्णोद्धार करवाया और उसमें 100 मन तांबे की छ़ड़ ड़ाली गई। इसके बाद पंचकल्याणक हुआ। फिर 32 साल बाद पुनः जीर्णोद्धार हुआ और महामस्तकाभिषेक व पंचकल्याणक महोत्सव मनाया गया। फिर सन् 1976 और 1991 में जीर्णोद्धार के बाद महामस्तकाभिषेक व पंचकल्याणक महोत्सव मनाया गया। इसके बाद 2008 में फिर जीर्णोद्धार के बाद महामस्तकाभिषेक व पंचकल्याणक महोत्सव मनाया गया।

पहाड़ी पर 800 सीढ़ियाँ हैं जो चूलगिरि तक जाती हैं। पहाड़ी के पास में ही मंदोदरी का प्रसाद बना है। पहाड़ पर कुल 11 मंदिर हैं और तलहटी पर 15 मंदिर। क्षेत्र पर मंदिरों में स्वर्ण का काम किया गया है और विकास कार्य चल रहे हैं। यहाँ 6 गेस्ट हाउस हैं और 35 कमरे अटैच लेट-बाथ के हैं। 4 बड़े हाल हैं। नियमित रूप से सशुल्क भोजनशाला चलती है। गुप्तिसागर ग्रंथालय के नाम से पुस्तकालय भी बना है। परिसर में सुंदर बगीचे बने हैं। नाभिराय विद्याश्रम के नाम से एक शिक्षण संस्था भी संचालित की जा रही है। यहाँ पर प्राप्त शिलालेख भी संग्रहित किए गए हैं। क्षेत्र के आस-पास जैन प्रतिमाएँ खनन में मिलती ही रहती हैं जो यहाँ के महत्व की परिचायक हैं।

विशेष आयोजन – बावनगजा में प्रतिवर्ष पोष सुदी 8 से 15 तक वार्षिक मेला लगता है। भगवान आदिनाथजी का निर्वाणोत्सव माघबदी चौदस को मनाया जाता है। 12 वर्षों के अंतराल पर महामस्तकाभिषेक महोत्सव आयोजित होता है।

पहुँच मार्ग – क्षेत्र पर बस द्वारा पहुँचा जा सकता है। बड़वानी इससे नजदीकी बस स्टेण्ड हैं जिसकी दूरी यहाँ से 8 कि.मी है। बड़वानी बावनगजा नियमित बस सेवा है।

बड़वानी से नजदीकी रेलवे स्टेशन – इंदौर 160 कि.मी, खंड़वा – 180 कि.मी., दाहोद -170 कि.मी, महू – 138 कि.मी
नजदीकी हवाई अड्डा – इंदौर – 160 कि.मी

सभी जगह से बस व टैक्सी सेवा उपलब्ध है।

नोट- आवास व्यवस्था में परिवर्तन हो सकता है । साथ ही समय समय जीर्णोद्धार का कार्य चलता रहता है तो उसमें परिवर्तन होना सम्भव है।

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