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मुनि श्री के बारे में





मुनि श्री के बारे में
प्रातः स्मणीय आचार्य गुरुवर १०८ श्री विद्या सागर जी के आज्ञानुवर्ती शिष्य मुनि श्री १०८ निर्वेग सागरजी महाराज का जन्म १o दिसंबर १९७३ को छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश में हुआ था। मुनि श्री पर आचार्य भगवन की अनवरत कृपा रही और गुरुदेव ने बहुत ही धर्म प्रवहवना की जिस से सभी प्राणियों का कल्याण हुआ है | शुरवात से की गुरुदेव ने युवाओं को धर्म से जोड़े रखने का प्रयास किया है | |
मुनि श्री को पाठशाला प्रणेता के नाम से जाना जाता है क्यों की पुरे देश मैं मुनि श्री ने पाठशालाओं को खुलवाया है |
इसके बाद, ७ अक्टूबर १९९५ को सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर, जिला दमोह, मध्य प्रदेश में आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा प्राप्त की। फिर, २१ अगस्त १९९६ को अतिशयक्षेत्र महुआजी, जिला सूरत, गुजरात में आचार्य श्री 108 विद्यासागरजी महाराज से ऐलक दीक्षा प्राप्त की। अंततः, १६ अक्टूबर १९९६ को मध्य प्रदेश के देवास जिले के सिद्धक्षेत्र नेमावर में आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज से मुनि दीक्षा प्राप्त की। दीक्षा के पश्चात उनका नाम मुनि श्री १०८ निर्वेग सागरजी महाराज रखा गया।
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